pulwama terrorist attack : मोहब्बत के दिन 40 जवानों संग वतन पर जान लुटा गए शहीद बीरेंद्र सिंह राणा
14 फरवरी 2019 को पुलवामा आतंकी हमले में शहीद होने वाले 40 जवानों में उत्तराखंड के बेटे ने भी शहादत दी थी। बेटे की कमी परिवार को ताउम्र खलती रहेगी।
By Skand ShuklaEdited By: Updated: Fri, 14 Feb 2020 10:43 AM (IST)
हल्द्वानी, जेएनएन : आज जब देश और दुनिया के लोग वैलेंटाइन मना रहे हैं, इश्क और मोहब्बत का इजहार कर रहे हैं, वहीं भारत के कई ऐसे परिवार हैं जिनके घरों में उदासी छाई है। आज का दिन उनकी जिंदगी काला अध्याय है। दरअसल आज पुलवामा आतंकी हमले की पहली बरसी है। 14 फरवरी 2019 को जम्मू से श्रीनगर की तरफ सीआरपीएफ के जवानों का एक काफिला आ रहा था। इस काफिले में करीब 38 से 40 गाड़ियां शामिल थीं, जिसमें ढाई हजार जवान सवार थे। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे पुलवामा के अवंतिपुरा इलाके के पास इस काफिले में शामिल एक बस को सुसाइड बांबर ने विस्फोटक से भरी कार से टक्कर मार दी थी। इस दौरान हुए भयानक विस्फोट में 40 जवान शहीद हो गए थे। शहादत देने वाले उन्हीं जवानों में एक उत्तराखंड का भी बेटा था, नाम- शहीद बिरेंद्र सिंह राणा। उधमसिंहनगर जिले के खटीमा निवासी शहीद बीरेंद्र सिंह राणा का परिवार आज दुखों में डूबा है। बेटे की शहादत को एक साल हो गए।
एक हाथ पापा का एक हाथ मम्मी का कहकर बच्चों को नहीं खलने दी कमी
शहीद होने के बाद परिवार वालों की जिंदगी किन कठिनाइयों से गुजरती है ये दर्द सिर्फ वही जानता है, जिस पर बीतती है। राज्य सरकार ने शहादत पर शहीद बीरेंद्र सिंह राणा की पत्नी रेनू को को तहसील नौकरी दी है। अब वह तहसील के सरकारी आवास में रहकर दोनों बच्चों छोटा बेटा बियान साढ़े तीन साल व पांव साल की बेटी रूही के साथ रहती है। रेनू बताती है कि ऐसा कोई दिन नहीं जब पति की याद न आती हो। 12 फरवरी 2019 को ही वह घर से निकले थे। 14 तारीख की सुबह और दोपहर को ठीक से बातें हुई थी। देर रात को अनहोनी सूचना मिली। अब जिदंगी भर यह उनकी यादों के सहारे जी रही हूं और बच्चों को पढ़ा रही हूं। रात को बच्चे को एक हाथ मम्मी का और एक हाथ पापा का बताकर उनकी कमी नहीं खलने देती हूं। मैं ही मम्मी मै ही पापा बताकर रोज बच्चों को सुलाती हूं। जब बच्चे पापा के पास जाने की जिद करते हैं तब अंदर ही अंदर टूट जाती हूं, बच्चे सब सो जाते हैं तब आंखों से पानी रुकता नहीं है, लेकिन मैं बच्चों को अपने पापा की तरह बहादुर ही बनाऊंगी।
कभी-कभी लगता है मेरा बेटा ड्यूटी से घर आ रहा हैशहीद बीरेन्द्र के पिता दीवान सिंह की उम्र 81 वर्ष है। कहते हैं तीन बेटों में बीरेंद्र जिगरी बेटा था। परिवार में जब बटवारा हुआ तो तीन बेटों में मुझे बीरेंद्र ने ही अपने साथ रखने की जिद की थी। 2004 में नौकरी में लग गया था। वही मेरा सबसे ज्यादा ख्याला रखता था। कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता था जिस दिन में शहीद बेटे की राह नहीं देखता था। बेटे के बारे में सोचता हूं तो ऐसा लगाता है कि मेरे पास ही है। स्कूल की छुट्टियों पर बीरेंद्र के बच्चे घर आते हैं तो लगता है बीरेंद्र छुट्टी पर घर आया है, जब बच्चे चले जाते हैं तो उनकी बहुत याद आती है, लेकिन बीरेंद्र के बच्चों और अपने दो अन्य बेटों के बच्चों को देखकर खुद को संभालता हूं।
आज भी शहीद के दोस्तों में भरा है गम और गुस्साशहीद बीरेंद्र के साथ पढऩे वाले और छुट्टियों में साथ रहने वाले दोस्त कहते हैं, बीरेंद्र अपनी शहादत देकर सबके हीरो बन गए हैं। पर वह असल जिदंगी में भी हीरो थे। छुट्टी के दिनों में साथ रहने वाले साथी रामकिशन, अमर सिंह, बलवीर सिंह, गोविंद सिंह, उमेश सिंह, कन्हई सिंह, सुरेंद्र, प्रताप, सहदेव सिंह आदि ने बताया कि बीरेंद्र बिना दोस्तों से मिले कभी भी वापस नहीं जाता था। गांव में कोई शादी-विवाह होता है था तो बीरेंद्र को पहले सूचना दे दी जाती थी, जिससे वह छुट्टी लेकर आ सा सके। अब जब भी गांव में ऐसा कोई कार्यक्रम होता है तो उसकी कमी खलती है। चचेरे भाई धर्मेंद्र ने बताया कि शहीद बीरेंद्र के बड़े भाई राजेश की बेटी की एक माह पहले शादी हुई थी। उस दिन बीरेंद्र कमी खलने पर पूरे गांव की एक बार आंखे भर आई थी। पिता के आंसू छलक पड़े थे।
आखिरी समय पर बस तक न छोड़ने की है टीस शहीद के जीजा रामकिशन कहते हैं वह साला (पत्नी का भाई) ही नहीं मेरे दोस्त जैसा था। हर छुट्टी के बाद वह बीरेन्द्र को बस तक छोडऩे जाते थे। पुलवामा अटैक से ठीक दो दिन पहले बीरेंद्र छ़ट्टी पर रहकर गया था। लेकिन तब किसी जरूरी काम से उसे बस स्टैंड छोड़ने नहीं जा सका था । इस बात की टीस आज भी मन में है। काश बीरेन्द्र को छोड़न चला गया होता।
शहीद द्वार और स्मारक नहीं बनने पर है पीड़ाशहीद की पत्नी रेनू, पिता दीवान सिंह, बड़ा भाई जयराम सिंह सिंह का एक ही कहना है कि उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त की थी कि स्कूल के पास स्मारक और सड़क पर शहीद द्वार बना जाए। विधायक पुष्कर सिंह धामी ने आश्वासन दिया है कि वे जल्द बनवाएंगे। गांव के पास ही शमशान स्थल बनाने को भी कहा गया था। हालांकि सड़क का काम शुरू हो गया है और स्कूल का नाम शहीद के नाम से कर दिया है। शहीद के परिजनों का कहना है कि स्मारक और शहीद द्वार भी बनाना चाहिए था।
पुलवामा में स्मारक बनाने के लिए शहीदों के घर से ले गए मिट्टी सीआरपीएफ ग्रुप केंद्र काठगोदाम के डीआइजी प्रदीप चंद्रा ने बताया कि पुलवामा हमले में शहीद सीआरपीएफ के 40 जवानों के घर की मिट्टी से भव्य स्मारक बनाया जाएगा। इसके लिए शहादत देने वाले जवानों के घरों से मिट्टी लेकर पुलवामा पहुंचाया जा रहा है। 14 फरवरी यानी आज सभी शहीदों के घर की मिट्टी पुलवामा में एकत्रित होगी। 11 फरवरी को खटीमा के शहीद बिरेंद्र सिंह राणा के घर की मिट्टी लेकर एक विशेष प्रतिनिधि जम्मू-कश्मीर के लिए रवाना हो गया है। डीआइजी ने बताया कि शहीद बिरेंद्र के परिवार के सुख-दु:ख में सीआरपीएफ हमेशा साथ खड़ा है। वीरांगना रेनू राणा को सरकार की ओर से खटीमा तहसील में नौकरी दी गई है। सीआरपीएफ की कल्याणकारी योजनाओं के तहत बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। शहीद के परिवार को एक फ्लैट भी ऊधमसिंह नगर में उपलब्ध कराया गया है।
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